भोर की आस में रात सो ना सकी

भोर की आस में रात सो ना सकी

चाँदनी सिलवटों में सिमटती रही,
भोर की आस में रात सो ना सकी।
बात कुछ अनकही कुछ अधूरी रही,
बात हो ना सकी रात सो ना सकी।

नैन के ख्वाब सारे पिघलते रहे,
रात भर नींद द्वारे सिसकती रही।
इक तमन्ना दिलों में मचलती रही,
इक तमन्ना कलेजा मसलती रही।

याद नश्तर बनी रात चुभती रही,
चाह कर बात कितनी सँजो ना सकी।
चाँदनी सिलवटों में----

सुबह की आस में रात चलती रही,
हर जगह राह में बस अँधेरा मिला।
जब दिखी रोशनी की झलक सी कहीं,
एक बिखरा हुआ सा सवेरा मिला।

आँधियाँ तेज थीं राह में इस तरह,
दीपिका रात भर टिमटिमा ना सकी।
चाँदनी सिलवटों में ------

कुछ यादों की परछाइयों के सिवा,
और कुछ पास बाकी बचा क्या यहाँ।
इन लम्हों की तन्हाइयों के सिवा,
अब कहने को बाकी नहीं कुछ यहाँ।

आधरों पे सजे गीत सब खो गए,
चाह कर गीतिका गुनगुना ना सकी।
चाँदनी सिलवटों में-------

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24 मई, 2024

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