मुक्तक- नई प्रीत मैं लिख दूँ

मुक्तक- नई प्रीत मैं लिख दूँ

कहो तो चाहतों का फिर नया कुछ गीत मैं लिख दूँ।
लिखूँ कुछ ख्वाहिशों को फिर नई सी रीत मैं लिख दूँ।
जो हो मुझको इजाजत यदि तुम्हारे पास आने की,
बनूँ फिर गीत अधरों का नई सी प्रीत मैं लिख दूँ।

खिलेंगे फूल राहों में तुम्हारा साथ मिल जाये।
कटेगी राह ये सारी तुम्हारा साथ मिल जाये।
नहीं होंगे नजारे दूर कभी अपनी निगाहों से,
चलेंगे साथ सब अपने तुम्हारा साथ मिल जाये।

मैं अपने भाव गीतों में यहाँ तुमको सुनाता हूँ।
मिले दो पल सुकूँ मुझको तुम्हारे पास आता हूँ।
जमाने में कई होंगे मोहब्बत के तराने यूँ,
मगर दिल के तरानों को मैं गीतों में सजाता हूँ।

बड़ी तनहाइयाँ पसरी मगर ये काम तू कर दे।
नहीं कुछ और है यदि तो सभी गम नाम तू कर दे।
जो संभव हो सके न यदि हमारे पास आने की,
ज़माने में मुझे कुछ और फिर बदनाम तू कर दे।

बड़ी कमबख्त यादें हैं मुझे सोने नहीं देतीं।
मिले जो जख्म जीवन में कभी खोने नहीं देतीं।
जाने दुश्मनी है क्या मिरी पलकों की आँसू से,
कि चाहूँ लाख मैं लेकिन मुझे रोने नहीं देतीं।

अपने जज्बातों को अकसर मैं छुपा लेता हूँ।
मिले हर दर्द से यूँ रिश्ता मैं निभा लेता हूँ।
जमाना देख न ले मेरी पलकों के आँसू को,
भींग कर बरसात में मैं आँसू बहा लेता हूँ।



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