सारी रात बीनते बीती

सारी रात बीनते बीती

छिन्न भिन्न यादों के टुकड़े, सारी रात बीनते बीती

दिन के कोरे तापमान में, संबंधों की कोरी छाया,
झूठे वादे आसमान से, बीता दिवस न कोई आया।
बार-बार अखबार उठाकर, बासी खबरों को दुहराया,
नाम मात्र की सुबह हुई थी, कह-कह कर मन को बहलाया।

बेबस दिन के सूनेपन को, रात-रात भर गिनते बीती।।

ताप वात अनुकूलित घर में, जिंदा मौसम रहा तड़पता,
आधी उमर खोजते बीती, आधी को मन रहा कलपता।
जीवन भर जिस पावदान पे, सारी उम्र रगड़ते बीती,
उसका जर्जर हाल देख कर, सारी रात तड़पते बीती।

पावदान से जर्जर मन को, सारी रात सीलते बीती।

सजे-सजे तोरड़द्वारों से, जीवन भर मन रहा भटकता,
कितने सपने झोली में भर, खूँटी पर मन रहा लटकता।
गिरे अंक से कितने सपने, टूटे कितने ताने-बाने,
लेकिन मन के संधिपत्र पे, हस्तलिखित कितनी मुस्कानें।

संधिपत्र को मुस्कानों से, सारी रात लीपते बीती।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06अप्रैल, 2024

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