गिनता रहेगा यदि जगत ये, योगफल क्या प्रेम का है,
चुनता रहेगा वृत्तियों में, नेह यदि तो प्रेम क्या है।
होता गणित का बोध बौना, भाव की अनुरागिनी में,
योगफल कोई क्या गिनेगा, प्रेम की मधु यामिनी में।
यदि भाव में अनुबंध है तो, नेह का कैसा प्रवारण।
जो है कथानक छद्म यदि तो, नेह का अस्तित्व कैसा,
कहो आत्मा यदि है अमर तो, देह पर स्वामित्व कैसा।
हो भोर चाहे सांध्य तन की, साँस की सबको जरूरत,
क्या बन सकेगा इस जगत में, साँस का कुछ और पूरक।
यदि साँस से अनुबंध है तो, देह में कैसा प्रमादन।
जो सारथी यदि प्रेम है तो, पार्थ हो तुम स्वयं रथ में,
होगा समर्पित वन सुमन सब, साधना के मौन पथ में।
अहसास के जीवंत पथ का, न और अब प्रमाण होगा,
अब यवनिका के हर पतन पर, इक नया निर्माण होगा।
जब हो समर्पित वन सुमन सब, और जीवन हो पुजारन।
फिर प्रेम का कैसा प्रमाणन, प्रेम का कैसा प्रमाणन।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30 अप्रैल, 2024
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