गजल- दोस्ताना

गजल- दोस्ताना

तुझसे मिलकर के मैंने ये जाना मेरे दोस्त
बाद मुद्दतों के खुद को पहचाना मेरे दोस्त

एक अरसा हुआ आईना देखे हुए मुझको
तुझे देखा तो आईना भी हुआ दीवाना मेरे दोस्त

अपनी यादों की महक अब भी वहीं बाकी है शायद
फिर सपनों में वहीँ पर हुआ आना-जाना मेरे दोस्त

माना कुछ पल का ही साथ हमारा था उस दिन
पा अपना वो साथ कब हुआ पुराना मेरे दोस्त

अपनी मसरूफ़ियतें हमें फिर मौका दे या न दे
मगर सदा सलामत रहे ये दोस्ताना मेरे दोस्त

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02 मई, 2024

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