नारी

नारी

नव सपनों की आशाओं की, तुम मौन समर्पण हो नारी,
जीवन के मूल भावना की, तुम असली दर्पण हो नारी।
व्यर्थ याचना से हटकर के, तुम बिना झुके ही रहा करो,
चंचल लहरों सी नदिया की, तुम बिना रुके ही बहा करो।

तुम सृष्टि नियंता हो जग की, तुम ही पालक हो जीवन की,
तुम आशाओं का झुरमुट हो, तुम अभिलाषा हर उपवन की।
तुम छंद युक्त हो गीत मधुर, तुम कविताओं की जननी हो,
हो मानस की तुम चौपाई, तुम वेद ग्रन्थ की सरिणी हो।

खुशियों का तुम हो प्रथम पृष्ठ, तुम उम्मीदों का प्रमुख चित्र,
अनुशीलन हो सब भावों का, तुम ही जीवन का प्रथम मित्र
सूर्योदय से गोधूली तक, तुम चतुर्दिशा में रहती हो,
सब बाधाओं सब विध्नों से, तुम बिना रुके ही बहती हो।

तुम  प्राण वायु इस सृष्टि की, तुम मूल स्रोत हर दृष्टि की,
तुम हो पावस की प्रथम बूँद, और मृदुल रागिनी वृष्टि की।
तुम केंद्र बिंदु हो जीवन के, हर मधुर यामिनी रागों की,
शीतलता का मूल स्रोत हो, इस विकल हृदय की बातों की।

तुम श्रेष्ठ भावना धरती की, तुम मृदुल कामना धरती की,
तुम भावों का हो एक कल्प, तुम श्रेष्ठ प्रार्थना धरती की।
जीवन के हर इक पथ पर तुम, प्रतिपल अबाध गति चला करो,
औरों से मिलने से पहले तुम, अपने मन से मिला करो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22 अप्रैल, 2024




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