श्री राम का प्रभाव
स्वयं से भी पूर्व दूसरों को जो संवार दे।
औरों के लिए चले औरों के लिए पले,
औरों के लिए यहाँ स्वयं को भी वार दे।
ऐसे श्रेष्ठ पंथ का नहीं कहीं विराम है,
त्याग जिसके भाव में, भाव उसके राम हैं।
प्रेम भाव का जहाँ पे स्वयं ही प्रभाव हो।
प्रेम का प्रवाह हो नहीं कोई दुराव हो।
सबसे एक भाव और सत्य का चुनाव हो,
श्रेष्ठ मन की वृत्ति और सबसे सद्भाव हो।
प्रेम सद्भावना का नहीं जहाँ विराम है,
प्रेम जिसके भाव में, भाव उसके राम हैं।
अर्थ-लाभ द्रोह-मोह लोभ से जो हो परे।
क्षोभ-क्रोध व्यग्रता से मन रहे सदा परे।
वासना के भाव भी न ध्यान को डिगा सके,
जिसके बस प्रभाव से वर्जनायें हों परे।
वासनाओं का जहाँ पर न कोई काम हो,
धर्म जिसके भाव में, भाव उसके राम हैं।
इक वचन के मान पे स्वयं को जो हार दे।
पा जगत की संपदा इक वचन पे वार दे।
शब्द-शब्द पुण्य पंथ भावना ही चेतना,
सत्य को स्वीकार कर स्वयं को भी हार दे।
सत्य की पुण्यता का नहीं जहाँ विराम हो,
सत्य जिसके भाव में, भाव उसके राम हैं।
सूर्य के भी ताप में खुद को जो जला सके।
चाँद की रश्मियों में खुद को जो गला सके।
शीत-ताप जो भी हो न माथ पे शिकन रहे,
उच्चता के बोध में मन को भी मिला सके।
शुद्धता के बोध का नहीं जहाँ विराम हो,
शुद्ध जिसकी भावना, भाव उसके राम हैं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
21 जनवरी, 2024
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