ट्रेन मैनेजर के मन के भाव
लाखों भावनाओं का लिए एहसास चलते हैं।
काँधों पर हमारे अनगिनत लम्हों की मुस्कानें,
इन लम्हों की बाहों में हमारे दिन निकलते है।
हमारी रात का दिन का नहीं कोई ठिकाना है।
बनाते रोज पटरी पर यहाँ अपना ठिकाना है।
हमारी रात की दिन की यही इतनी कहानी है,
अधूरी इक कहानी है अधूरा इक फसाना है।
नहीं है नींद आँखों में मगर इक आस पलती है।
समानांतर पटरियों के हमारी साँस चलती है।
लिखे हैं गीत कितने ही यहाँ हर रोज जीवन के,
इन गीतों के साये में हमारी आस पलती है।
लिए मुस्कान चेहरों पर समय का मान करते हैं।
के आया पास जो अपने हम सम्मान करते हैं।
मिलती हैं दुआओं में हमें अकसर जो मुस्कानें,
उन्हीं मुस्कानों में अपनी खुशी अनुमान करते हैं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19 जनवरी, 2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें