मैं जग को गीत सुनाऊँगा।

मैं जग को गीत सुनाऊँगा

जग के अंतस की पीड़ा से, शब्द पुष्प के भाव उगाकर,
साथ कोई गाये न गाये, अपने सुर से उसे सजाकर।
इस जीवन के हर भावों को, मैं युग-युग तक दुहराऊँगा,
जब तक मेरी श्वास चलेगी, मैं जग को गीत सुनाऊँगा।

गीतों की हर पंक्ति-पंक्ति में, भावों का सम्मोहन होगा,
आहों के हर अनुरोधों का, साँसों में अनुमोदन होगा।
पलकों का हर अश्रु गीत बन, हृदय पृष्ठ पर अंकित होंगे,
पीड़ाएँ सम्मानित होंगी, हर शब्द-शब्द स्पंदित होंगे।

इस पीड़ा के हर स्पंदन को, मैं जन-जन तक पहुँचाऊँगा,
जब तक मेरी श्वास चलेगी, मैं जग को गीत सुनाऊँगा।

यादों के मानसरोवर से, कुछ दृश्य बहारें आयेंगी,
जिस तक जग की पहुँच नहीं है, उन दृश्यों को दिखलायेंगी।
रेतीले तट पर सागर के, लहरों का अनुरंजन होगा,
सागर की लहरों से मन के, गीतों का अनुबंधन होगा।

यादों को हृदय लगाकर मैं, लहरों के गान सुनाऊँगा,
जब तक मेरी श्वास चलेगी, मैं जग को गीत सुनाऊँगा।

इन गीतों के सिवा जगत को, और नहीं कुछ दे पाऊँगा,
आया खाली हाथ जगत पर, खाली हाथ नहीं जाऊँगा।
आज नहीं तो कल होगा जब, मेरे गीत सुने जायेंगे,
पीड़ा जब सम्मानित होगी, मेरे गीत चुने जायेंगे।

पीड़ा के हर द्रवित भाव को, मैं गीतों से सहलाऊँगा,
जब तक मेरी श्वास चलेगी, मैं जग को गीत सुनाऊँगा।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      17 जनवरी, 2024

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