मुक्त रचना- हम कहीं भी रहें याद हम आएंगे।

मुक्त रचना- हम कहीं भी रहें याद हम आएंगे।

दो घड़ी का मिलन माना अपना मिलन,
कौन जाने कहाँ फिर किधर जायेंगे।
बस यही गीत ही अपनी पहचान हैं,
हम कहीं भी रहें याद हम आएंगे।

धड़कनों में सदा यादें बन हिचकियाँ,
साँस के साथ ही आती जाती रहेंगी।
भावनाएं हृदय की छुपा न सकेंगे,
साँसों में ये सदा छटपटाती रहेंगी।

बस यही हिचकियाँ अपनी पहचान हैं,
हम कहीं भी रहें याद हम आएंगे।

नींद पलकों को छूकर के रुक जाएगी,
रातें बन अनछुई छटपटाती रहेंगी।
स्वप्न के बोझ से आँख झुक जाएगी,
सिलवटें रात भर कसमसाती रहेंगी।

अनछुई सिलवटें अपनी पहचान हैं,
हम कहीं भी रहें याद हम आएंगे।

लम्हों ने जो लिखी सदियों ने वो पढ़ी,
जिंदगी की कहानी रुकी कब यहाँ।
आज है जो यहाँ कल कहीं और हो,
दासता बादलों ने सही कब कहाँ।

लम्हों की ये कहानी ही पहचान है,
हम कहीं भी रहें याद हम आएंगे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       18जनवरी, 2024








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