व्याकरण के शब्द भारी हो गये हैं
जब कली ने पुष्प का जीवन लिया है,
कंटको ने भी वहाँ अनबन किया है।
जब प्रणय ने गीत मन में गुनगुनाया,
वेदना ने भी वहाँ पर सुर सजाया।
क्यूँ प्रणय के गीत पलकों ने कहे जब,
वेदना से अश्रु खारी हो गये हैं।
साँस ने जब-जब मिलन का गीत गाया,
आह ने भी कण्ठ में आ सुर सजाया।
गूँजते हैं गीत अब अनुगूँज बनकर,
लौट आयी वेदना सब गीत बनकर।
गीत साँसों से लिपट कर हैं बहे जब,
अश्रु मन के ब्रह्मचारी हो गये है।
अब कहूँ क्या मौन मन की भावनाएँ,
सह रहा कैसा हृदय ये यातनाएँ।
गीत सारे रिक्त होकर लौट आये,
और बनकर अश्रु पलकों को सजाये।
वेदना का प्रीत से बंधन हुआ जब,
कोर के सब अश्रु भारी हो गये हैं।
वेदना के गीत पलकों से बहे जब, व्याकरण के शब्द भारी हो गये हैं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11 जनवरी, 2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें