हम भी कह न सके तुम भी कह न सके
हम भी कह न सके तुम भी कह न सके।
शब्द के अर्थ सारे कहीं छुप गये,
दो कदम जो चले थे कहीं रुक गये।
चाहतें मौन थीं कुछ कमी रह गयी,
बात कितनी यहाँ अनकही रह गयी।
वेदना अश्रु में भी अधूरी रही,
आँसू बह न सके तुम भी सह न सके।
गीत जब-जब सजे आँधियाँ आ गईं,
जब उजाले मिले बदलियाँ छा गईं।
आस थी कि बनायेंगे हम कारवाँ,
पर झुका कब जो झुकता ये आसमां।
चाह जो थी दबी वो दबी रह गयी,
हम भी कह न सके तुम भी कह न सके।
चाँदनी जब पड़ी हर घड़ी मन जला,
मन न कुंदन बना, मौन ये तन जला।
द्वंद्व चलता रहा स्वयं में हर घड़ी,
जुड़ सकी न स्वयं से जो बिछड़ी कड़ी।
चाँदनी दूर से मन लुभाती रही,
हम भी सह न सके तुम भी सह न सके।
अब न जानूँ यहाँ है किनारा कहाँ,
चल रहा पर न जानूँ कि जाना कहाँ।
राह ओढ़े मुसाफिर बनी जिंदगी,
कोष से झर रही है यहाँ जिंदगी।
धुंध गहरा हुआ जा रहा है यहाँ,
हम भी चल न सके तुम भी चल न सके।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30 दिसंबर, 2023
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें