ये नया कैलेंडर वर्ष है
सभी भोर का कार्य रुका है।
ओढ़ रजाई भारी-भारी,
काँप रहे सारे नर नारी।
जन-जन में नया उत्कर्ष है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
एक हाथ में बोतल भारी,
दूजे में है बोतल खाली।
झूम रहे सारे मदमाते,
छेड़ रहे सब आते-जाते।
गली-गली हुआ अपकर्ष है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
नहीं हाथ को हाथ सूझता,
मुश्किल है अब हाल पूछना।
कुहरे की छाई है चादर,
उल्लासों में छाया बादल।
ये कैसा नया आकर्ष है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
नहीं द्वार पर कहीं अल्पना,
अलसायी है सभी कल्पना।
ठिठुर रहे हैं भाव हृदय के,
बदले-बदले हाल समय के।
ये कैसा नया आदर्श है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
जब धुंध सभी छँट जाएँगे,
जब खग मृग सारे गाएँगे।
प्रकृति नव निर्माण करेगी,
अधरों पर मुस्कान सजेगी।
नया संवत्सर आदर्श है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
रंगों का मौसम आने दो,
मंदिर में गान सुनाने दो।
नव पल्लव खिल जाने दो,
खलिहान यहाँ मुस्काने दो।
तब चेहरों पे नया आकर्ष है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से,
दिवस शुरू हो नूतन विधि से।
मंत्रों से नभ सज जायेगा,
तब अपना नव वर्ष आयेगा।
यहाँ समय वही आदर्श है,
ये नया कैलेंडर वर्ष है।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01जनवरी, 2024
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