साधो किससे नेह लगाये

साधो किससे नेह लगाये

कदम-कदम पे कितने मेले
भीड़ बड़ी है भारी,
किसके आगे मन की बोलें
सोच यही है भारी,
ढूँढ़ रहा है मनवा अपना
कोई तो मिल जाये,
साधो किससे नेह लगाये।

कितने सपने कितने वादे
पग-पग मन भरमाये,
पाँच बरस में द्वारे आते
आकर के फुसलाये,
कौन यहॉं पर इनसे पूछे
कइसे प्रश्न उठाये,
साधो किससे नेह लगाये।

धरम-करम की बात करें पर
सच से रखते दूरी,
ताकत की कठपुतली बनते
कैसी है मजबूरी,
इस पाले या उस पाले की
सत्ता में ललचाये,
साधो किससे नेह लगाये।

प्यार मुहब्बत दया धरम सब
बातें हुईं पुरानी,
स्वार्थ सिद्धि में मन डूबे जब
गढ़ते रोज कहानी,
विरह, वेदना झूठ साँच अब
कितने जतन उठाये,
साधो किससे नेह लगाये।

पुरुष नारि में भेद बहुत है
किसको व्यथा सुनाये,
कोख में फिर न मारी जावें
कुछ तो करो उपाये,
बेटी का जब मान घटेगा
सृष्टी ये मुरझाये,
साधो किससे नेह लगाये।

धन दौलत के पीछे भागे
कैसी दुनियादारी,
सिसक रही है नैतिकता क्यूँ
आयी कउन बिमारी,
चीर हरण हो रहा सत्य का
केशव कहाँ लुकाये,
साधो किससे नेह लगाये।

कहे समय अब माँग यही है
अपनी-अपनी देखें,
पाप-पुण्य का लेखा-जोखा
छोड़ स्वयं की चेतें,
देखें अपने मन के भीतर
जीवन ये हरषाये,
साधो किससे नेह लगाये।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28 दिसंबर, 2023

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