प्रभु की पीड़ा
किया वचन संपूर्ण सब, रखा सभी का मान।
पूर्ण किया चौदह बरस, प्रभुवर लौटे धाम।।
देखि अयोध्या प्रभु हर्षाये। अवधपुरी के मन को भाये।।
देख नगर को नयना बरसे। मन ही जाने कितना तरसे।।
ऋषी मुनी सब प्रिय जन आये। बाद बरस के सबको पाये।।
माता के पग शीश नवाया। माता ने नव जीवन पाया।।
मिले सभी पर नयना तरसे। याद पिता की पल-पल बरसे।।
खोज रहे हैं नयना जिसको। दिल में क्या है कहते किसको।।
बहते आँसू रोक न पाते। अपने मन को क्या समझाते।।
सिंहासन पे सूनापन था। बिना प्राण ज्यूँ जीवित तन था।।
विधना ने क्या खेल रचाया। खुद को खोकर वचन निभाया।।
प्रभुवर कैसे सोये होंगे। सिया-राम बस रोये होंगे।।
राजमहल सब सूना लागे। रात-रात भर नैना जागे।।
मात-पिता का वचन निभाया। जग को सुंदर पाठ पढ़ाया।।
मर्यादा का मान बढ़ाया। तब पुरुषोत्तम राम कहाया।।
दया शौर्य का मान बने हैं। भारत के प्रतिमान बने हैं।।
लोभ मोह सब त्याग कर, दिया जगत को ज्ञान।
कर्तव्यों के पथ चले, बने राष्ट्र अभिमान।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26अक्टूबर, 2023
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें