जीवन के कितने सावन, संग समय के बीत गये,
कभी हृदय घट भरा रहा और कभी ये रीत गये।
रीते घट में सपनों को कोई आता भर जाता
काश मुझे इन गीतों में मेरा बचपन मिल जाता।
गली मुहल्ले की बातें संग गुजारी वो यादें,
दिन के टुकड़ों में छुपकर रातों तक होती बातें।
बीते पल की यादों को कोई आता दुहराता,
काश मुझे इन गीतों में मेरा बचपन मिल जाता।
मिलते जब दो चार घड़ी बातों में खो जाते थे,
मन में कोई फिकर नहीं नित-नित स्वप्न सजाते थे।
सपनों से पंखुरियों को कोई आता सहलाता
काश मुझे इन गीतों में मेरा बचपन मिल जाता।
फिर वो कागज की कश्ती फिर बारिश का पानी,
कहीं बरसते फिर घन बादल आती याद पुरानी।
बन बारिश की बूँदें आता अंतर्मन सहलाता,
काश मुझे इन गीतों में मेरा बचपन मिल जाता।
हर छोटी से ख्वाहिश पर मन कितना खिल जाता था,
इक छोटे से आँचल में सब सपना मिल जाता था।
फिर सपनों के आँचल से आता पलकें सहलाता
काश मुझे इन गीतों में मेरा बचपन मिल जाता।
धूप-छाँव का खेल जिंदगी इससे किसकी यारी है,
जीवन की संध्या में कल जाने किसकी बारी है।
जीवन की बची सांध्य में आता मन बहला जाता,
काश मुझे इन गीतों में मेरा बचपन मिल जाता।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17अक्टूबर, 2023
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