जिंदगी की शाम
हर उम्र की है इक सुबह हर उम्र की इक शाम है
कब थमी हैं चाहतें उम्र के पड़ाव पे
चाहतों के दौर में उम्र बस बदनाम है
नफरतों का दौर तो स्वयं को सँभाल लो
स्वयं का स्वभाव ही प्रेम का पैगाम है
कहने को तो जिंदगी जी रहे हैं सभी
औरों के लिए जिये उसी का तो नाम है
था दिवस थका-थका माना रात मंद है
पर बीच में हँस रही इक हसीं शाम है
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17अक्टूबर, 2023
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