सबल रहो प्रबल रहो

सबल रहो प्रबल रहो

विपत्तियाँ तो आयेंगी, उनकी एक राह है,
समुद्र की गहराईयों, की भी एक थाह है।
अपने हौसलों पे तुम, अविचल रहो अटल रहो,
सत्य मार्ग के प्रशस्ति तक, सबल रहो प्रबल रहो।

हैं द्वार तो अनेकों पर चाभी सिर्फ एक है,
सत्य का हो साथ जिसपर राह वो ही नेक है।
तुम चुन के मार्ग जीत का स्वयं को निश्चल रखो,
सत्य मार्ग के प्रशस्ति तक, सबल रहो प्रबल रहो।

भोर के प्रभाव को न रात रोक पाई है,
एक नई सुबह लिये उम्मीद मुस्कुराई है।
उम्मीद के प्रभावों से स्वयं को उच्चल रखो,
सत्य मार्ग के प्रशस्ति तक, सबल रहो प्रबल रहो।

है कमी जो स्वयं में तो उसका आत्मज्ञान हो,
सदा यहाँ विपत्तियों में स्वयं का सम्मान हो।
हर विपत्तियों में भी सदा स्वयं को अचल रखो,
सत्य मार्ग के प्रशस्ति तक, सबल रहो प्रबल रहो।

हर उम्र का इक दौर है आयेगी-जायेगी,
उम्र के प्रभाव की नव कहानियाँ सुनाएगी।
उस प्रभाव के स्वभाव से मन को तुम सरल रखो,
सत्य मार्ग के प्रशस्ति तक, सबल रहो प्रबल रहो।

हो पुण्य पंथ के पथिक तो जीत बस पड़ाव है,
जो रुक गये पड़ाव पर तो स्वयं से दुराव है।
हर पुण्यता के मार्ग पर मन को तुम अटल रखो,
सत्य मार्ग के प्रशस्ति तक, सबल रहो प्रबल रहो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15अक्टूबर, 2023


उच्चल- गतिवान, उच्चता

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