व्यस्तता ऑनलाइन
इक दूजे की कौन सुने सब ऑनलाइन ही व्यस्त हैं।
ट्रेन भले हो बस हो चाहे, स्टेशन या कहीं पार्क हो,
कहीं रोशनी ज्यादा हो या, फिर कहीं अँधेरा डार्क हो।
नजर जिधर भी डालिए, बस रील बनाने की होड़ है,
रिकिम-रिकिम के कंटेंट हैं, रिकिम-रिकिम की दौड़ है।
चाहे पूजा पाठ हो या फिर शादी हो बारात हो,
भले अकेले हो कोई या, संगी-साथी साथ हो।
मेमोरी के नाम पर खुद को ऐसे-ऐसे मोड़ रहे,
पाउट कहीं, कहीं पर एक्शन, अच्छे तन को तोड़ रहे।
आज घरों से निकल सड़क तक रील की होड़ा-होड़ी है,
कल तक जिसके पैसे लगते वो स्वयं द्वार तक दौड़ी है।
पल भर में फेमस होने की ये गली-गली तकरार है,
फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर अब इनकी ही भरमार है।
रील बनाने के चक्कर में, कितने ट्रेन के नीचे आये,
कितने जीवन दूषित हो गये, पूछे कौन कि क्या-क्या पाये।
हो कहीं सड़क पर कोई घटना, बस पहले रील बनाना है,
मोबाइल के दौर में पहले, खुद ही न्यूज़ चलाना है।
न तथ्यों की परख यहाँ है, सब बातों को तोड़ रहे हैं,
एक ग्रुप से माल उठाते, दूजे ग्रुप में छोड़ रहे हैं।
झूठ-साँच की परख के बदले, अफवाहों का दौर है,
ऐसा लगता चोट कहीं पर, दर्द कहीं पर और है।
बदला समय बड़ी तेजी से, अनुभव की अब कौन सुने,
पहले आओ पहले पाओ, घड़ी प्रतीक्षा कौन चुने।
सस्ती लोक लुभावन बातें, करती मन को विकल यहाँ,
ऐसा ही जो दौर चला तो, किसको पूछे कौन कहाँ।
सब मोबाइल का दोष नहीं, ये सारा दोष हमारा है,
आज दिखावे की दुनिया में, सब फिरते मारा-मारा हैं।
सुविधाएं जब सिर पर चढ़कर, अपना रूप दिखाएंगी,
फिर तार-तार शुचिता होगी, फिर नैतिकता पछताएगी।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25सितंबर, 2023
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