है नमन उस पंथ को जिस पंथ सेनानी चले।

है नमन उस पंथ को जिस पंथ सेनानी चले।।

भेंट कर अपनी जवानी उम्र को जीवन दिया,
पुष्प राहों में बिछा कर कंटकों को चुन लिया।
है हमें जिसने दिखाया भोर की पहली किरण,
अंक में जिसने हमारे हैं भरे सुंदर सुमन।

है नमन उस पंथ को जिस पंथ बलिदानी चले,
है नमन उस पंथ को जिस पंथ सेनानी चले।  

हैं सँवारे स्वप्न जिसने हर सिसकती आह में,
और तन को है सँवारा हर दहकती आग में।
जिनके जज्बों ने दिखाया दर्द को भी रास्ता,
जिनके मन में राष्ट्र से बस प्रेम का था वास्ता।

है नमन उस अंक को जिस अंक बलिदानी पले,
है नमन उस पंथ को जिस पंथ सेनानी चले।  

जिसने मृत्यू से सदा पूछा क्या उसका पता,
मृत्यू खुद सम्मुख रही जिसके नतमस्तक सदा।
दौड़ता जिनकी नसों में राष्ट्र का अभिमान था,
और जिनके नैन में नव स्वप्न का निर्माण था।

है नमन उस पंथ को जिस पंथ अभिमानी चले,
है नमन उस पंथ को जिस पंथ सेनानी चले।  

है दिया जिसने हमेशा मंत्र केवल जीत का,
राष्ट्र को जिसने सिखाया मंत्र सबसे प्रीत का।
साँस में जिनकी हमेशा राष्ट्र का गुणगान था,
राष्ट्र ही अभिमान था बस राष्ट्र ही सम्मान था।

है नमन उस पंथ को जिस पंथ सम्मानी चले,
है नमन उस पंथ को जिस पंथ सेनानी चले।  

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28फरवरी, 2023
 

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