एक गीत मुझको दे सके न।

एक गीत मुझको दे सके न। 

एक तुमसे गीत जीवन का था कभी माँगा मगर
है यही अफसोस के एक गीत मुझको दे सके न।।

थी बड़ी लंबी डगर और रास्ते भी थे हजारों
पर उभरते प्रश्न मन के रोकते थे राह मेरे
चाहता था मन यही इक बार तुमको फिर पुकारुँ
पर अधूरे शब्द कुछ थे चुभ रहे थे कंठ मेरे
एक तुमसे शब्द जीवन का था कभी माँगा मगर
है यही अफसोस के एक शब्द मुझको दे सके न।।

अंजुरी थी रिक्त लेकिन पुष्प तुमको सौंपना था
दूर राहें हो न जायें एक पल को रोकना था
रोक पर मैं न पाया आवाज थी कितनी लगाई
पर रुँधे थे शब्द शायद दे न पाये जो सुनाई
आस के कुछ पल वहाँ पर हमने कभी माँगा मगर
है यही अफसोस के इक पल भी मुझको दे सके न।।

एक अंतिम भेंट की उम्मीद पग बाँधे हुए थी
इसलिए नजरें अभी तक द्वार पर ठहरी हुई हैं
भोर की उम्मीद मन में रात भी बाँधे हुए थी
इसलिए कुछ चाँदनी की रश्मियाँ पसरी हुई हैं
बस यही उम्मीद लेकर ये रात थी जागी मगर
है यही अफसोस एक उम्मीद भी तुम दे सके न।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21फरवरी, 2023



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