सपनों को आज जलाया।

सपनों को आज जलाया।  

कल तक आहें रहीं खोजती
जिन यादों के धुँधले पन्ने।
जिनमें पल-पल रहीं उलझतीं
पलको के कुछ खोये सपने।।
यादों के उन अवशेषों को
ढोता कब तक आज भुलाया।
निज पलकों पर सजे नहीं जो
उन सपनों को आज जलाया।।

रात-रात भर जाग-जाग कर
सुबह सवेरे झाँक-झाँक कर।
मन के द्वार चले आते थे
भावों को जो तड़पाते थे।।
पल-पल अंतस जो घिसते थे
उनको मैंने आज सुलाया।
जिसने मन को घाव दिया है
उन सपनों को आज जलाया।।

पल-पल कितने प्रश्न खड़े थे
अवरोधों से मौन पड़े थे।
राहें जैसे बंद पड़ी थीं
उम्मीदें सब मौन खड़ी थीं।।
पल-पल जो चुभते रहते थे
उन प्रश्नों को आज जलाया।
जिसने अंतस को भेदा है
उन सपनों को आज जलाया।।

जब संकल्पों की थी बारी
नहीं लिया कुछ जिम्मेदारी।
लेकिन जिसने दंश दिया है
लेगा उनकी कौन सुपारी।।
पल-पल जिसने दर्द दिया है
रात-रात भर मुझे रुलाया।
जिसने मेरी नींदें लूटीं
उन सपनों को आज जलाया।।

आज स्वयं को जान सका हूँ
अपना मन पहचान सका हूँ।
आज किसी से नहीं शिकायत
जग से कुछ भी नहीं अदावत।।
भींगीं पलकें रहीं सिसकती
पोंछ नयन उनको समझाया।
जिनसे पलकें-बोझिल-बोझिल
उन सपनों को आज जलाया।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02फरवरी, 2023


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