दिल क्यूँ लगाया।

दिल क्यूँ लगाया।  

तुमने कैसा है साथ मुझसे निभाया
जाना ही था जो तो ख्वाब क्यूँ दिखाया

दो कदम साथ चलना मुनासिब नहीं जब
क्यूँ साथ रहने की हसरत दिल में जगाया

छोड़ना ही था दिल को यूँ मँझधार में
उल्फत का यकीं फिर इसे क्यूँ दिलाया

जिन गीतों में तेरे कहीं भी नहीं था
गीत अधरों पे मेरे क्यूँ फिर सजाया

देव अंजाम से अब परेशान क्यूँ हो
खुद ही बेदर्द से जब दिल था लगाया

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05फरवरी, 2023

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