दोहे।।
ज्ञान दान प्रभु दीजिये, सबका हो सम्मान।
मंगलमय सब काज हो, दो इतना वरदान।।1।।सकल पाप का नाश हो, बढ़े सत्य का मान।
मिल जुल कर सब जन रहें, नहीं रहे अभिमान।।2।।
सिरहाने पर है खड़ी, देख सुनहरी भोर।
नवयुग के निर्माण को, आलस सारे छोड़।।
गई निशा नव दिन चढ़ा, नई करो शुरुआत।
नया-नया अनुमान हो, नई-नई हो बात।।
मन ही स्वयं का शत्रु है, मन ही मन का मीत।
जैसी मन की भावना, वैसी बनती रीत।।
ढूँढे मन जो आपना, कितना कुछ मिल जाय।
गहरे पानी बीच से, जैसे मोती पाय।।
संतों की संगत मिले, मिटे सकल अभिमान।
सफल मनोरथ हों सभी, बढ़े ज्ञान सम्मान।।
दूर कुसंगति से रहें, करें नहीं अभिमान।
कीर्ति सकल जग में बढ़े, बढ़ता जग में मान।।
ज्ञान मिला सम्मान भी, हुआ जगत में नाम।
लेकिन मन के मैल को, मिला नहीं आराम।।
ज्ञानी अतिज्ञानी बना, हुई ज्ञान से रार।
अर्ध ज्ञान ने कर दिया, सब कुछ बंटाधार।।
भटक-भटक कर दिन ढला, तड़प रही है रैन।
मैं के चक्कर में सभी, भूल रहे सुख चैन।।
मनवा तो चंचल यहाँ, उड़ि-उड़ि इत उत जाय।
मन पर जो काबू करे, सच्चा सुख वो पाय।।
जैसा मन का भाव है, मिलता वैसा संग।
मन की इच्छा के बिना, होत नहीं सत्संग।।
ज्ञान धन संपत्ति बढ़े, करे नहीं अभिमान।
अभिमानी जो मन हुआ, मिलत नहीं सम्मान।।
सत्य सनातन सर्वदा, जहाँ धर्म का मान।
जीवन फलता फूलता, विश्व करे यशगान।।
प्रकृति ने सबको दिया, एक बराबर धूप।
जैसा मन में भाव है, वैसा खिलता रूप।।
सच्चे मन से लीजिए, हरपल प्रभु का नाम।
सुख वैभव समृद्धि बढ़े, बनते बिगड़े काम।।
प्रेम दिनन मत बाँधिये, ये वो जीवन डोर।
रिश्तों को सुंदर करे, जैसे पावन भोर।।
प्राची की पहली किरण, आयी मन के द्वार।
धीरे-धीरे खुल रहे, बंद हृदय के द्वार।।
द्वार हृदय के खोलकर, सबका करिये मान।
भाव हृदय के शुद्ध हो, स्वतः बढ़े सम्मान।।
बीते कल को भूलकर, नूतन हो शुरुआत।
आशायें हों सारथी, नई बने फिर बात।।
लोभ मोह मद क्रोध सब, करते मन की हानि।
जीवन सुंदर चाहिये, ये अवगुण पहचानि।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01फरवरी, 2023
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