धुँधले अक्षर उन पन्नों के।
धुँधले अक्षर उन पन्नों के सुना रहे थे कोई कहानी।।
हाथ लगाया उस पन्ने को जमी धूल को जैसे झाड़ा
उभर के अक्षर नैन में चुभे जैसे तैसे उसे सँभाला
रुँधे कंठ से सारे बोले बतलाओ क्या दोष हमारा
समय जो लिखा नाम पटल पर हमने तो बस उसे पुकारा
माथे की रेखायें उभरी अंतस भी बोला अकुलाकर
कितनी रहीं अधूरी बातें साँसों को है जिसे सुनानी
कुछ ने मन का द्वार खँगाला औ कुछ ने मन का वातायन
कुछ ने मन को दुत्कारा है औ मन का कुछ ने अभिवादन
छपे प्रेरणा बन नयनों में कुछ में थोड़ी नींद रह गई
एक पृष्ठ में कितनी बातें कुछ धुँधली उम्मीद रह गईं
उम्मीदों को दिया सहारा कुछ सूने मन को समझाकर
कुछ धुँधली बातें खिल आयीं कुछ बातें रह गईं बतानी
कुछ अक्षर इतने धुँधले थे जो नयनों को दिख नहीं पाये
कुछ की साँसें घुटी-घुटी थी मन की बात नहीं कह पाये
कुछ उमड़े अधरों को छूकर कुछ ने आँखों को फुसलाया
कुछ ने मन को राह दिखाई कुछ ने मन को फिर बहलाया
कुछ आँसू का रूप धर लिये गिरे बूँद नयनों से बहकर
कुछ माटी में कहीं खो गये कुछ की बाकी रही निशानी
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18फरवरी, 2023
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