एक किनारा।
कभी मिलेगा साहिल इसको कहीं मिलेगा इसे सहारा।।
जीवन के हर पथ पर कितने
स्वप्न खड़े हैं हाथ पसारे
कुछ नयनों में आन बसे हैं
कुछ पलकों को करे इशारे
कुछ बूँदों में बहे बिखर कर कुछ ने आकर इसे सँवारा
मन की नैया बीच भँवर में ढूँढ़ रही है एक किनारा।।
जग में कितने मेले सारे
कब जाने मन किसमें हारे
किसमें जाने क्या मिल जाये
किसमें जाने कौन पुकारे
जग के इस मेले में जाने क्या लग जाये मन को प्यारा
मन की नैया बीच भँवर में ढूँढ़ रही है एक किनारा।।
दूर क्षितिज पर सूर्य ढल रहा
धरती से आकाश मिल रहा
सांध्य पलों में जीवन में अब
मन से मन को मौन पल रहा
देर रात धीरे से आकर सिमटा लेती है जग सारा
मन की नैया बीच भँवर में ढूँढ़ रही है एक किनारा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
13फरवरी, 2023
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