वही डगर है जहाँ कभी हम
छोड़ चले थे बचपन अपना
इसी राह पर चलते-चलते
टूटा था जो देखा सपना
थी सपनों की रात सुहानी जाग रही थी रैन तरसते
एक कहानी पीर पुरानी रही अधूरी लिखते-लिखते।।
कहीं कसक थी मन के भीतर
धड़क रही थी जो धड़कन में
रही सुलगती प्यास हृदय की
आशाएं मन की सावन में
बूँदें झर-झर रहीं बरसते प्यासा मन पर रहा तड़पते
एक कहानी पीर पुरानी रही अधूरी लिखते-लिखते।।
हाथों की रेखाओं में भी
जाने कैसी जंग छिड़ी थी
लिए लेखनी वक्त खड़ा था
मगर वक्त की किसे पड़ी थी
किया बेरुखी वक्त से हृदय देख रहा मन उसे बिखरते
एक कहानी पीर पुरानी रही अधूरी लिखते-लिखते।।
आज शून्य में विचर रहा है
सिमट गईं सब आहें मन की
सन्नाटे में बिखर रहा मन
बिछड़ रहीं अब साँसें तन की
हाय कहूँ क्या दूर हुए क्यूँ प्रेम डगर पर चलते-चलते
एक कहानी पीर पुरानी रही अधूरी लिखते-लिखते।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11फरवरी, 2023
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