सभयसिंधुगहिपदप्रभुकेरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥। गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥ | समुद्र नेभयभीतहोकरप्रभु के चरण पकड़करकहा- हेनाथ! मेरे सबअवगुण (दोष)क्षमाकीजिए।हे नाथ! आकाश,वायु,अग्नि, जल और पृथ्वी-इन सबकी करनीस्वभाव से ही जड़ है॥1 |
नीलकंठ कहलायेगा।
चाहा कितना जोर लगाया अनुमानों तक छू न सके।
हुआ असंभव कद को पाना और पहुँच के बाहर था
मरे शब्द अधरों से गिरकर चाहा कितना जी न सके।।
भाव प्रभु श्री राम सा मिलना है इतना आसान नहीं
चक्र सुदर्शन धारी बनना सोच सके आसान नहीं।
त्याग तपस्या के बल से ही इनके पथ को पा सकते
द्वेष भाव औ बैर भरा हो तो पथ ये आसान नहीं।।
कलयुग का है खेल सभी ये मन सबका भरमाया है
अपने-अपने मन विवेक से सबने भाव बनाया है
जो अक्षर बोध समझ न पाये चले व्याकरण समझाने
अपना घर तो सँभल न पाया प्रभु पर प्रश्न उठाया है।।
माना तुम हो सही गलत वो क्या वो कद छू सकते हो
तुम कहते हो गलत किया है क्या तुम वो कर सकते हो।
जिन्हें वोट की चिंता रहती त्याग तपस्या क्या जानें
जन-जन के मन में बसने को क्या सोने सा तप सकते हो।।
एक शब्द के अर्थ बहुत हैं सबको है मालूम यहाँ
द्विअर्थी संवादों में जो सदा खोजते मर्म यहाँ।
मनमाफिक सब अर्थ बना कर दुनिया को भरमाते हो
अपने जिह्वा की फिसलन पर बोलो क्या सकुचाते हो।।
मर्यादा की खातिर जिसने सुख जीवन का त्याग दिया
जितनी ही विपदाएं आयीं हँस कर बस सम्मान किया।
हमें सिखाया जिसने जीवन व्यर्थ नहीं गँवाते हैं
विपदाओं के महासमर में कभी नहीं घबराते हैं।।
एक न सत्य धर्म की खातिर खुद पर कितना दाग लिया
जिस कोख से जन्म लिया था उसी कोख का त्याग किया।
हर संभव संकट को जिसने हँसकर खुद पर झेला है
गोवर्धन उँगली पर रखकर विपदाओं से खेला है।।
मात-पिता भाई का रिश्ता इक ने सबको सिखलाया
धर्म-अहिंसा सत्य सनातन इक से जग ने है पाया।
इक ने वचन बद्धता दी है दूजे ने है ज्ञान दिया
इक ने मूल्य सिखाया जग को दूजे ने सिद्धांत दिया।।
इक ने राजधर्म सिखलाया दूजा कूटनीति में माहिर
इक ने नीति धर्म सिखलाया इक की सेवा जग जाहिर।
दो नामों में मंत्र सभी है न जादू न टोना जंतर
यही शास्वत सत्य यही है और यही जगत में सुंदर।।
तनिक असुविधा होते ही जो सिर पर व्योम उठाते हैं
झूठी शानो शौकत पर जो फूले नहीं समाते हैं।
सत्ता सुख की खातिर क्या है वचनबद्धता क्या जानें
सत्ता के गलियारों का जो रस्ता केवल पहचानें।।
इन पर प्रश्न उठाना है तो इन जैसा बनना होगा
जितना त्याग किया जीवन में त्याग वही करना होगा।
आसानी से कब मिलता है उम्मीदों को पंख यहाँ
सेज फूल की यदि चाहो काँटों पे भी चलना होगा।।
अपने भीतर झाँकेगा जो वही सत्य जी पायेगा
सागर का मंथन जब होगा अमृत तब ही आयेगा
दूर खड़े हो प्रश्न उठाना रहता है आसान सदा
लेकिन विष जो धरे कंठ में नीलकंठ कहलायेगा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
31जनवरी, 2023
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