झूठे ज्योति पुंज के साये में देखा अँधियार बहुत है।।
हाहाकारी इस जीवन में अपना पद अरु मान घटाकर
दूजे के भावों को छलकर जीना मुश्किल यहाँ बहुत है
झूठे ज्योति पुंज के साये में देखा अँधियार बहुत है।।
मन के झूठे अनुरोधों पर साँसें भी असमर्थ हुई हैं
ढँक कब पाया झूठ-तर्क सब आहें सारी व्यर्थ हुई हैं
किन्तु मोह के आगे सारे जीवन के प्रतिबंध गिरे हैं
जैसे पतझड़ ऋतु आते ही शाखों से सब पुष्प झरे हैं।
पतझड़ ऋतु में पुष्पाच्छादित उपवन का मनुहार बहुत है
झूठे ज्योति पुंज के साये में देखा अँधियार बहुत है।।
पग-पग जीवन एक पहेली कुछ सुलझे कुछ सुलझ न पाये
कुछ उलझे निज परिभाषा में चाहा मन पर समझ न पाये
जाने कैसी अनुशंसा में निज मन ये उलझा जाता है
खोल न पाये गाँठ हृदय की बंधन कब सुलझा पाता है।
अनुशंसा में उलझे मन को खलता ये व्यवहार बहुत है
झूठे ज्योति पुंज के साये में देखा अँधियार बहुत है।।
बाँध हवा को पाना मुश्किल कितने ही आये चले गये
जितने महाबली उभरे थे सब समय चक्र में छले गये
दूजे मन को दूषित कर के कब मिलता है सम्मान यहाँ
शकुनी की चालों को मिलता सदा उचित परिणाम यहाँ।
गीता के हर उपदेशों का निज मन पर उपकार बहुत है
झूठे ज्योति पुंज के साये में देखा अँधियार बहुत है।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
08जनवरी, 2023
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