चाहता हूँ वेणियों मै गूँध दूँ आकाशतारा।।
चाहता हूँ वेणियों में गूँध दूँ आकाशतारा।।
माँग में तेरे सजा दूँ नेह की सारी कलायें
पाश में भरकर उतारूँ मैं तिरी सारी बलायें
माथ पर तेरे सजा दूँ भोर का पहला सितारा
चाहता हूँ वेणियों मै गूँध दूँ आकाशतारा।।
नैन मैं मैं आज भर लूँ प्रेम की हर भंगिमा को
इस हृदय को मैं सजाऊँ चाहतों की लालिमा से
और भर दूँ इस भुवन में आज मैं मधुमास सारा
चाहता हूँ वेणियों मै गूँध दूँ आकाशतारा।।
पुष्प से मधुरस चुराकर आज अधरों पर लगा दूँ
बाल रवि की रश्मियों को इन कपोलों पर सजा दूँ
आज रच दूँ गात पर मैं धरा का श्रृंगार सारा
चाहता हूँ वेणियों मै गूँध दूँ आकाशतारा।।
पास बैठो मैं भरूँ पिय अंक में मृदु रत्न सारे
भरे पुष्पित भाव मन में स्वयं रतिपति जो सँवारे
नव्य कलियों की दमक से आज भर दूँ अंक सारा
चाहता हूँ वेणियों मै गूँध दूँ आकाशतारा।।
यूँ सजा कर रूप तेरा चाहता तुमको निहारूँ
धूप-बाती प्रेम की ले आरती तेरी उतारूँ
और आलिंगन धरूँ मैं नेह का अमृत पिटारा
चाहता हूँ वेणियों मै गूँध दूँ आकाशतारा।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
10जनवरी, 2023
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