लिखना था तुम्हारे संग चाहा पर न लिख पाया
अधूरे गीत अधरों पर रुके पर मन न गा पाया
रुकी जो चाहतें मन में अभी तक वो सताती हैं
विरह ने गीत जो गाया अभी तक मन न सह पाया।
मिलन के स्वप्न नयनों में अभी तक वो अधूरे हैं
मेरे कुछ गीत उल्फत के राहों में अधूरे हैं।।
वो खुशबू आज भी मन के कोनों में महकती हैं
वो साँसें आज भी पल-पल आहों में दहकती हैं
आहों में अभी तक भी तुम्हारी चाह जिंदा है
यादों के चिरागों की वो धीमी लौ तड़पती है।
जली बाती चिरागों की मगर सपने अधूरे हैं
मेरे कुछ गीत उल्फत के राहों में अधूरे हैं।।
जाना जो जरूरी था तो इतना ही बता जाते
नहीं जो रीत थी कोई निगाहों को जता जाते
न लेता दोष सर माथे गिरे जो हाथ से लम्हे
कि अपने हाथ से खुद ही मिटा कर नाम तो जाते।
गिरे कुछ हाथ से लम्हे बचे जो हैं अधूरे हैं
मेरे कुछ गीत उल्फत के राहों में अधूरे हैं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
07जनवरी, 2023
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