सपने कुछ हमने भी बोए।
बूँद पलक के द्वारे आए
कुछ ने मन को बहलाया
आहों को कुछ भरमाए
कुछ बूँदों में चैन मिला है
कुछ में हमने जीवन खोए
फिर भी आस रही पलकों से
सपने कुछ हमने भी बोए।।
रही हथेली रिक्त भले ही
नहीं शिकायत रही समय से
लम्हों से कितने दर्द मिले
नहीं शिकायत करी समय से
गिरे हाथ से लम्हे कितने
लेकिन दामन नहीं भिंगोए
फिर भी आस रही पलकों से
सपने कुछ हमने भी बोए।।
रूक जाता तो कैसे जीता
थमने का कुछ मोल नहीं था
रुक कर आँसू ही पीता जो
सपनों का कुछ मोल नहीं था
बने बिगड़ते सपने लेकर
जग जाने क्या, कितना रोए
फिर भी आस रही पलकों से
सपने कुछ हमने भी बोए।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28जनवरी, 2023
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