अवधी गीत- दहेज कुप्रथा।
जोड़ईं हाथ मूड़ नवावईं माँगइ मोहलत तंग दिल से।
कइसन जग में रीत चलल बा पैसा ही भगवान भइल
बिटिया जनमब यहिं युग में बोला का अपमान भइल।
मंदिर-मंदिर चौखट-चौखट केतनी अरज गोहार लगायेन
तब जाई के ओनकर घर मे सुंदर सी एक बिटिया पायेन।
किलकारी सुनि के बिटिया के दुख सारा बिसराई दिहिन
बिटिया के न बोझ समझिहा घर भर के समझाई दिहिन।
अइसन लागइ देखि के ओहके परी धरा पे उतरी हौ
अउ दादी-दादा नानी-नाना के आँखे के पुतरी हौ।
आँखी से जो आंसु गिरइ तो काम छोड़ि सब दौड़ई लागईं
कोरा में लेई के सब केयू आँसू ओकर पोंछई लागईं।
बीतत समय देर केतना पढ़ि लिखी बिटिया भई सयानी
सोचि विदाई बिटिया के बहई आँख से झर-झर पानी।
लेकिन जग के रीति पुरानी केयू बिटिया के कब राखि सकल
केतनउ चाहई अपने मन में समय के का केऊ बान्हि सकल।
योग्य देखि के बिटिया खातिर ब्याहें के इंतजाम किहिन
रुपया-पैसा, गहना-गुरिया यथाशक्ति वरदान दिहिन।
एककई बिटिया जानि के लरिका वालन मुँह बाढ़ई लाग
छवउ महीना नाहि बिता कि फिर से पैसा माँगई लाग।
एक दुइ बार त ओनके मन के सारी इच्छा पूर किहिन
करजा वरजा काढ़ि के कइसेउ हाथे पइसा लाई धरिन।
एक त बियाहे के करजा ऊपर से ई नई समस्या
अब त जीवन लागई लाग अपने मां इक नई समस्या।
कुछ दिन ले बरदाश्त किहिन फिर पानी सर से ओर होइगा
हर आये दिन नई माँग अब मुश्किल दाना-पानी होइगा।
रोज-रोज के मार पीट से मन सब कर उकताई गवा
जवन सोन एस मोह बिटिया के उ कइसन मुरझाई गवा।
हद त होइगा एक दिन लरिका बिटिया के पहुंचाई दिहिन
नई कार के लिस्ट हाथ पे लाई के उनके थमाई दिहिन।
अब हमसे बरदाश्त न होई बाबू आखिर केतना करब
रोज-रोज के इनकर लालच अउर ताड़ना अब न सहब।
मोह के खातिर बिटिया के अब नई कार मँगवाई दिहिन
बेचि के आपन बिस्सा ओनकर घर पइसा पहुंचाई दिहिन।
लेकिन लालच अइसन मन में नवा पाप संचार भयल
मार-पीट आये दिन ताना अब जीवन के आहार भयल।
मूड़ पकरि के बिटिया रोवइ अउर न कउनो रस्ता सूझै
हाथ जोड़ि के कहेस प्रभु से अगले जनम न बिटिया कीजै।
एक दिन ई संदेश मिलल के बिटिया के सब जारि दिहिन
छाती पीट के माई रोवइ बिटिया के हमारे मार दिहिन।
कोर्ट कचहरी भयल मुकदमा सब अपराधी जेल ग्याल
लेकिन बिटिया के दोष रहा का जेकरे साथे पाप भयल।
लालच के खातिर दुनिया में मनई केतना अंधा होई गा
सूट-बूट से ऊपर बाटई भीतर से मुदा मंगा होई गा।
का बिटिया के जीवन के यहिं समाज मे मोल नहीं
केहू बतावइ कि समाज में का जीवन अनमोल नहीं।
दहेज प्रथा की आड़ में कितना जीवन ई बरबाद भइल
शिक्षा, संस्कृति अउर सभ्यता ई सबकर अपमान भइल।
गर सम्मान मिली नारी के जीवन ई खुशहाल रही
चीर द्रौपदी के खींची जे ऊ जीवन बदहाल रही।
कुरुक्षेत्र होई जाये जीवन कौरव जइसन हाल होई
मूल रही न जीवन के कुछ ई दुनिया बेहाल रही।
सृष्टि के निर्माता नारी अउ जीवन के पालन कर्ता
इनके ही सम्मान से घर के सारा दुख दरिद्र हरता।
दहेज प्रथा उ दीमक हौ जो समाज के चलि डाली
जो एकर अंत न होई मनुज सभ्यता छलि डाली।
कहे देव अब गाँठ बान्हि ल बात यही अनमोल अही
जेहिं घर नारी जीवन कलपी वहिं घर के कउनो मोल नहीं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
हैदराबाद
23जनवरी, 2023
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