अवधी गीत- कर्म वचन न चंगा होइहैं।।
कतहु पे कचरा कतहु पे टेनरी अउर कतहु अपमान भइल
कतहु पे नाली गिरत अहइ अउर कतहु पे केऊ पानी रोकई
कतहु पे काटई पेड़ रूख अउर कतहु पे केऊ गंदा झोंकई
अइसन ही जो हाल रही तो निर्मल कबहु न गंगा होइहैं
अंतस कबहु शुद्ध न होई मन कर्म वचन न चंगा होइहैं।।
गंगोत्री से निकली हैं अउर हरिद्वार पे धरती आइन
जड़ी, बूटी पर्वत से लाइन दुनिया के जीवन दिखलाइन
जउने-जउने राह चलिन कुलि राह पवित्र कई देहलिन
रोग, दरिद्र दूर करिन अउ खुशहाली घर-घर देहलिन
इनके अपमान जहाँ होई मन वु कबहु न चंगा होइहैं
अंतस कबहु शुद्ध न होई मन कर्म वचन न चंगा होइहैं।।
खेती-बाड़ी अउ लरिकन-बच्चन तुहिं जीवन के मूल्य अहियु
शिक्षा, संस्कृति, धरम, सभ्यता, नैतिकता के मूल अहियु
तोहरी गोदिया में खेल कूद के भारत के माटी सोन भयल
राम, कृष्ण, गौतम, नानक, गीता, पुराण अनमोल मिलल
एक बूँद से तोहरे मिल के गड़ही भी गंगाजल होइहैं
बिन तोहरे मन ई शुद्ध न होई मन कर्म वचन न चंगा होइहैं।।
जउने-जउने रस्ता चललू वहिं के माटी हरियाई दिहु
लोभ, मोह अउ पाप के मन से बहरे रस्ता दिखलाई दिहु
काशी, प्रयाग अउर गंगा सागर धरती पे स्वर्ग बसाइयू तू
शंखनाद करि कुरुक्षेत्र में पांडव के युद्ध जिताइयू तू
जेकरे मन मां पाप बसल हौ सकल जगत मां नंगा होइहैं
अंतस कबहु शुद्ध न होई मन कर्म वचन न चंगा होइहैं।।
कहे देव बस पानी नाहीं तू भारत के प्राण वायु अहियु
दुख-दरिद्र दूर करे जो अइसन तू वरदान अहियु
तोहरे पानी के अंजुलि भर के देवलोक भी धन्य भयल
आशीष मिलल बा हम सबके हमरो जीवन भी धन्य भयल
जो तू रहबियु मैली अब भी भारत के मन ई गंदा होइहैं
अंतस कबहु शुद्ध न होई मन कर्म वचन न चंगा होइहैं।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22जनवरी, 2023
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