अवधी गीत-गलत हमेशा गलत रही।

अवधी गीत-  गलत हमेशा गलत रही।  

नवा जमाना देख के मन में
कइसन-कइसन भाव जगल
लालच, लोभ, मोह में पड़ि कर
अइसन वइसन चाह जगल।

बॉलीवुड के देखि सिनेमा
लोगन के मन बदलत बा
धरम करम के प्रति लोगन के
भाव चित्त से उतरत बा।

केहू कहे बेसरम रंग हौ
लगे केहू के सब उद्दंड
औ केहू के लागत बाटई
पूजा-पाठ भक्ति पाखंड।

दुसरे के घर देखि हवन
आपन खिड़की बंद करईं
शंख-नाद सुनि के सारे
काने के अपने बंद करईं।

केहू कहत हौ भोले जी के
दूध चढ़ाउब व्यर्थ इहाँ
राम-नाम के पाठ केहू के
लागत बाटई व्यर्थ यहाँ।

टीका-चंदन मंदिर-मंदिर
अपराधिन के डेरा बोलेन
वेद-पुराण ऋषि मुनि के
बदनाम करे खातिर मुँह खोलेन।

नवा जमाना देखि के ओनकर
मनमाना सब ढंग भईल
कलि तक साड़ी ठीक रहल
अब काहे के तंग भईल।

देह देखाइब बॉलीवुड में
लागत हौ सम्मान भईल
नीति शास्त्र के बात इहाँ
जइसन के अपमान भईल।

फिल्मन के नङ्गेपन पर
कहें, जनता इहे देखइ चहे
केऊ नँगा होइके आपन फोटो
पेपर-पेपर बेचई चाहें।

जब तक सब चुप रहल इहाँ
छेड़-छाड़ त खूब भईल
बॉयकाट के हवा चलल तो
खटिया काहें टूट गईल।

भिनसारे केयू कहेन आई के
नशा वशा केऊ नही करित
संझा होतइ दूसर बोलेन
थोड़-थाड़ सब कबहु करित।

कहे अजय यदि निक दिन चाहा
चाल, चरित्र अउ चित्र संभाला
राष्ट्र, धर्म, शिक्षा संस्कृति के
मूल के आपन ध्येय बना ला।

राम, कृष्ण, गीता रामायण
भारत के सब मूल तत्व हौ
इनकर अपमान इहाँ पर
जे करई ऊ दुष्चरित्र हौ।

गलत हमेशा गलत रही
केतनउ चाहा ठीक न होई
जेकरे मन में भाव गलत हौ
कबहु राष्ट्र के मीत न होई।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जनवरी, 2023



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