जो तुम्हारे हृदय को जगा न सकूँ।।
जो तुम्हारे हृदय को जगा न सकूँ।।
दीप की रोशनी में सुबह हो गयी
रात भर चाँदनी छटपटाती रही
चाँद चलता रहा रात भर आस में
चाँदनी दूर से ही बुलाती रही।
चाँद के दर्द का अर्थ होगा नहीं
भाव उसके तुम्हें जो जता न सकूँ
गीत लिखना यहाँ व्यर्थ होगा सभी
जो तुम्हारे हृदय को जगा न सकूँ।।
जिन्दगी में सभी कुछ मिला कब यहाँ
कुछ न कुछ तो कहीं पर कमी रह गयी
मिल न पाया सहारा सदा बाँह का
कुछ न कुछ आस मन की दबी रह गयी।
बेसहारे रहेंगे इरादे सभी
आज उसको तुम्हें जो बता न सकूँ
गीत लिखना यहाँ व्यर्थ होगा सभी
जो तुम्हारे हृदय को जगा न सकूँ।।
चाह जिसकी हृदय को हमेशा रही
वो मुझको तुम्हारे हृदय में मिला
मन भटकता रहा इस नगर में सदा
देख तुमको हुआ खत्म वो सिलसिला।
स्वर्ग भी अब मिले व्यर्थ होगा सभी
जो तुम्हारे हृदय को लुभा न सकूँ
गीत लिखना यहाँ व्यर्थ होगा सभी
जो तुम्हारे हृदय को जगा न सकूँ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
18जनवरी, 2023
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