फिर से मुझको स्वप्न वो मत दिखाओ।।
फिर मुझे उन रास्तों पर मत बुलाओ
जिस स्वप्न से बस अभी जागा हूँ मैं
फिर से मुझको स्वप्न वो मत दिखाओ।।
ढल चुकी रात जो गहरी अंधेरी
उस रात से मेरा नहीं अब वास्ता
जिन दिशाओं से अभी छूटा हूँ मैं
अब उन दिशाओं से नहीं है वास्ता।
जिन रास्तों में दर्द से गुजरा हूँ मैं
फिर मुझे उन रास्तों को मत दिखाओ
जिस स्वप्न से बस अभी जागा हूँ मैं
फिर से मुझको स्वप्न वो मत दिखाओ।।
वादे मन के द्वार पर घुटते रहे
यादों ने उनको कभी देखा नहीं
कुछ घुटे से दर्द अब भी राह तकते
है रास्ते क्या कंठ ने सोचा नहीं।
हैं घुटे उस दर्द के नासूर जो भी
उनकी आहों को मुझे मत सुनाओ
जिस स्वप्न से बस अभी जागा हूँ मैं
फिर से मुझको स्वप्न वो मत दिखाओ।।
आज मन की गाँठें सारी खुल गईं
सब दर्द की आहें हृदय में धुल गईं
मन पे कोई बोझ अब कुछ भी नहीं
खोई मन की साँस सारी मिल गईं।
कंठ में थी घुटी जो साँसें कल तक
फिर से उनको कंठ में मत दबाओ
जिस स्वप्न से बस अभी जागा हूँ मैं
फिर से मुझको स्वप्न वो मत दिखाओ।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16जनवरी, 2023
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