जीत का मंत्र।
तेज लो प्रकाश लो
मुट्ठियों को खोल कर
सारा तुम आकाश लो
शास्त्र वीर काँधों पे
शस्त्र तुम सजा लो अब
उठो के शत्रु सामने है
तेज तुम दिखा दो अब
तेज हो प्रभाव हो
वीर हो बढ़े चलो
जीत का ये मंत्र है
चले चलो चले चलो।।
राष्ट्र की पुकार है
भागवत का सार है
शत्रु जब हो सामने
प्रचंड तू प्रहार कर
भीम सा प्रभाव हो
न मन पे कुछ दबाव हो
शत्रु के रक्त से
धरा का तू श्रृंगार कर
मन में न अभाव हो
वीर हो बढ़े चलो
जीत का ये मंत्र है
चले चलो चले चलो।।
वार तू प्रचंड कर
स्वयं पर घमंड कर
हो जहाँ खड़े रहो
चट्टान से अड़े रहो
नेह के प्रभाव तुम
आज सारे त्याग दो
इस धरा को आज तुम
शत्रुओं से पाट दो
वक्त की यही पुकार
वीर हो बढ़े चलो
जीत का ये मंत्र है
चले चलो चले चलो।।
राह में रुके नहीं
शीश ये झुके नहीं
युद्धवीर बन चलो
राह अब थके नहीं
राष्ट्र की अखंडता का
तुम ही तो प्रमाण हो
जीत के नव राग से
शांति का निर्माण हो
शांति का आधार बन
वीर हो बढ़े चलो
जीत का ये मंत्र है
चले चलो चले चलो।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14जनवरी, 2023
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