व्यंग्य-असली सरकार।

व्यंग्य- असली सरकार।  

प्यार बुढ़ापे में होता है जवानी में व्यापार
दोनों में मिलता है धोखा जाने क्यूँ हर बार
दोनों के आड़े आती है महँगाई की मार
इन सब को वोटों में ढाले कहते हैं सरकार।।

चिट्ठी, पत्री तार सभी अब मोबाइल से हारे हैं
ऐसा कह दो कौन यहाँ जो इनसे भी न हारे हैं
रोज नीति नई है बनती परिवारों के बीच यहाँ
सुबह उठाई कसम यहाँ वो साँझ ढले बेचारे हैं।।

जो पत्नी की बात न माने ऐसा कोई वीर नहीं
सुनकर के जो मुँह न खोले उससे बढ़कर धीर नहीं
मिलने को तो मिल जाती हैं राहें हर मुश्किल की
पर गलती वो स्वीकार करें सबकी ये तकदीर नहीं।।

बिन माँगे जो मिले यहाँ बीवी की फटकार है
जिसको डांट मिली नहीं जीवन वो धिक्कार है
दोनों में सामंजस्य रखे ऐसे कितने लोग यहाँ
झूठे वादों से बहलाये सच वो ही सरकार है।।

देश दुनिया की खबर बताए वो ही तो अखबार है
चाय पिला कर काम निकाले मित्रों का व्यवहार है
सुबह करे वादा जनता से और निभाने की कसमें
साँझ ढले सब भूल गयी जो असली वो सरकार है।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07दिसंबर, 2022

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