कौन जाने क्यूँ अभी तक अंक का हर पृष्ठ रीता।।
दूर सूनी राह में हैं ढूँढते कोई निशानी
जो लिखा था पृष्ठ पहले आज खाली हो चुका है
पंक्तियों के मध्य जीवन कुछ चला है कुछ रुका है
द्वंद अंतस में अभी तक कौन हारा कौन जीता
कौन जाने क्यूँ अभी तक अंक का हर पृष्ठ रीता।।
ये शोर है कैसा सफर में जो हृदय की बींधता है
शून्यता का भाव पल-पल इस हृदय को खींचता है
आज मन को खींचता है कौन जाने गीत कैसा
रिक्तियों में भर रहा है आज ये संगीत कैसा
है बहुत मुश्किल कहूँ अब दर्द हँसकर मन क्यूँ पीता
कौन जाने क्यूँ अभी तक अंक का हर पृष्ठ रीता।।
मन न जाने गीत गाकर क्यूँ यहाँ दोषी बना है
दो कदम भी चल न पाये वेदना से पथ सना है
गीत नयनों ने लिखे जो बह रहे बन अश्रुधारा
पूछते हैं ये अधर अब कौन जाने है हमारा
शब्द से ही चोट खाये शब्द ही पैबंद सीता
कौन जाने क्यूँ अभी तक अंक का हर पृष्ठ रीता।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
09दिसंबर, 2022
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