जिंदगी पूछती कब है।



जिंदगी पूछती कब है।  

जिंदगी तू  भी  बोलती कब है
बंद  मुट्ठी को  खोलती कब है

कर ही देती है जो भी है करना
मौका  देने का  सोचती कब है

अपनी मरजी चलाने वालों को
ये  बता  दे  तू  टोकती  कब है

दौरे-हाज़िर में सितम् मुफ्लिस् पे
ढाने  वालों  को  रोकती  कब है

कितने  आये  चले  गये  कितने
तू बता किसको  ढूँढती  कब है

कितने   हसरत   दबाये  बैठे हैं
हाले-दिल उनका पूछती कब है

कैसे कह दूँ कि कुछ नहीं पाया
दे के कुछ भी तू  भूलती कब है

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29दिसंबर, 2022


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