दिल के मैखाने में।
राहतें उतनी मिली तेरे मैखाने में
सुकून-ए-दिल तलाशते रहे जितना
मिला वो हर बार मुझे इस पैमाने में
है मालूम सच जहर लगता है सब को
इसलिए झूठ को जिलाते हैं जमाने में
चाहा कितना कि सी लूँ मैं होठों को यहाँ
मगर नजरें कब रुकी हैं इसे जताने में
वार करते हैं हरबार रूठ जाते हैं
घबराते हैं आईने के पास आने में
बहुत मुश्किल है जान पाना दिल को
कभी तो बैठो देव दिल के मैखाने में
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
31दिसंबर, 2022
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