दर्द का रिश्ता।
कौन अब इतना निभा पाता है
काँटे हों फूल हों या खाली दामन
हर घड़ी मुझसे दिल लगाता है
लोग तो आते हैं चले जाते हैं
पास मेरे यही रह जाता है
कौन है अपना क्या पराया है
वक्त आने पर ये बताता है
आह जो निकली कभी दिल से
पास बस इसको अपने पाता है
लिखे गीत इसपर न जाने कितने
कौन है ऐसा जो इसे न गाता है
कहने को रिश्तों से भरी दुनिया
दर्द का रिश्ता दिल को भाता है
छोड़ परछाईं जब चली जाती
"देव" बस ये ही साथ आता है
उम्र ढली कितनी और बाकी क्या
साथ रहता है साथ जाता है
©✍️अजय कुमार पाण्डेय "देववंशी"
हैदराबाद
28दिसंबर, 2022
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