दूषित अनुबंध।
मन ने जिसका सम्मान किया
उसकी चौखट पर जाने क्यूँ
दूषित सब अनुबंध हो गये।।
जिनके पथ पर पुष्प बिछाए
हमने अपनी पलकों के
हमने जिनके पंथ सजाये
जीवन के हर हलकों में।।
गंतव्यों की राह मिली तो
कैसे सब संबन्ध हो गये
उसकी चौखट पर जाने क्यूँ
दूषित सब अनुबंध हो गये।।
संवादों का लिया सहारा
अभिव्यक्ति का मान किया
मुख से निकले हर शब्दों का
प्रतिपल है सम्मान किया।।
मेरी पीड़ा जब गायी तो
कैसे सब प्रतिबंध हो गए
उसकी चौखट पर जाने क्यूँ
दूषित सब अनुबंध हो गये।।
संबंधों में अर्थ बढ़ा तो
अर्थहीन संबन्ध हो गये
कल्पित चक्रव्यूह में सारे
जीवन के आंनद खो गये।।
घट-घट टूट रहा यूँ जीवन
भावों में अब द्वंद हो गये
उसकी चौखट पर जाने क्यूँ
दूषित सब अनुबंध हो गये।।
गीत पिरोया जोड़-जोड़ कर
शब्द-शब्द की मोती से
साज भरे जीवन में सारे
भावों की मृदु मोती से।।
लेकिन अधरों पर जाते ही
बिखरे सारे छंद खो गये
उसकी चौखट पर जाने क्यूँ
दूषित सब अनुबंध हो गये।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11दिसंबर, 2022
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