मुक्तक-मौन को इक अर्थ।
चाहता जिसमें हृदय फिर डूब जाए बन कहानी।
और भर दे बादलों में नेह की धारा सुनहरी
उम्र भर न सूख पाए जिसकी धाराओं का पानी।।
याद में छाए जो पल ऐसा कुछ अहसास भर दो
मौन भी चुप रह सके न ऐसा नव उल्लास भर दो।
ढूँढती कब तक रहें बदलियाँ ये राहें प्रेम की
हैं आज राहें मुखर फिर अंक में मधुमास भर दो।।
कौन जाने इस सफर का कौन सा पल चल रहा है
कौन जाने भाव कैसा वक्त के मन पल रहा है
वक्त की चुप्पी यहाँ तूफान है कितने समेटे
भोर में निखरा दिवाकर सांध्य पल में ढल रहा है।।
अब और कब तक ढोएंगे ये पाँव जर्जर गात को
ढोएंगी कब तक ये साँसें उस पुरानी बात को
रोज काँधे पर उठाये स्वप्न की गठरी अधूरी
ढोएंगी कब तक ये पलकें उस अधूरी रात को।।
वक्त की पाबंद लहरें दूर कहाँ तक जायेंगी
ज्वार के अंतिम क्षणों में लौट सतह पर आयेंगी
थक गयी जो पंक्तियाँ इस गीत के अंतिम सफर में
मौन को इक अर्थ देकर वो स्वयं ही छुप जायेंगी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11दिसंबर, 2022
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