गोली विज्ञापन की।

गोली विज्ञापन की।  

आज घरों में चौराहों पे 
कानों में बस बोल रहे हैं
कैसी गोली विज्ञापन की
जीवन में ये घोल रहे हैं।।

कदम कदम पर कितने वादे
कितनी रस्में कितनी कसमें
सच्चे कहते झूठे कहते
भरमाया मन रहता जिसमें
भाँति-भाँति के करतब करते
मन को पल-पल मोह रहे हैं
कैसी गोली विज्ञापन की
जीवन में ये घोल रहे हैं।।

क्या अच्छा है क्या अनुचित है
इसका ज्ञान भुला देते हैं
रहे जरूरत भले नहीं पर
मन में चाह जगा देते हैं
मोड़-माड़ कर जोड़-तोड़ कर
दबी आस को तोल रहे हैं
कैसी गोली विज्ञापन की
जीवन में ये घोल रहे हैं।।

काले को ये गोरा करते
अरु गौर वर्ण को और गोरा
भावों पर आलेपन करते
झूठ अधिक सच थोड़ा
थोड़े झूठे थोड़े सच्चे
जाने क्या-क्या बोल रहे हैं
कैसी गोली विज्ञापन की
जीवन में ये घोल रहे हैं।।

ज्ञानी के सब ज्ञान शून्य हैं
थे भावुक पर भाव शून्य हैं
इनके तर्कों के आगे सब
अनुभव औ व्यवहार शून्य हैं
मन को अपने वश में करते
कितने पत्ते खोल रहे हैं
कैसी गोली विज्ञापन की
जीवन में ये घोल रहे हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        01दिसंबर, 2022

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