विचलित हैं ये गीत हमारे।।
बाँट दिये तट पनघट सारे
जाने कैसी है ये विचलन
चुभे पुष्प या काँटे सारे
मन में है प्रति पल ये उलझन
कंटक पथ है कौन बुहारे
विचलित हैं ये गीत हमारे।।
इतिहासों की अनुश्रुतियों से
कुछ अनुस्यूत अनुकृतियों से
मन ने थोड़े भाव सजाये
अथक परिष्कृत अभिकृतियों से
जाने कैसी थी वो अनबन
हाथ नहीं कुछ आज हमारे
विचलित हैं ये गीत हमारे।।
जाने कैसा सरोकार है
विस्मृत क्यूँ सभी संस्कार है
गूँज रहे जिन गीतों के स्वर
स्वरों में क्यूँ हाहाकार है
सरोकार में ऐसी ठनगन
मन क्या जीते मन क्या हारे
विचलित हैं ये गीत हमारे।।
जाने मन क्यूँ नहीं जागता
मन अब मन को नहीं बाँधता
बंद पड़े गीता रामायण
चौपालों में नहीं बाँचता
सूना है अब मन का आँगन
चौबारों से कौन पुकारे
विचलित हैं ये गीत हमारे।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29नवंबर, 2022
अनुश्रुतियाँ- प्राप्त कथा या ज्ञान
अनुस्यूत-ग्रथित, पिरोया हुआ
अनुकृतियाँ- नकल
अभिकृति- एक प्रकार का छंद जिसमें 100 वर्ण या मात्राएं होती हैं।
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