मन के भाव पंक्तियों में।

मन के भाव-पंक्तियों में।

गीत लिखने का मुझको सलीका न था
शब्द खुद पंक्तियों में आ रचते गये
हमने बस भाव की एक माला बुनी
पृष्ठ की पंक्तियों में वो सजते गये।।

भाव से हमने पग-पग किया आचमन
आँजुरी में भरी छंदों की पाँखुरी
नयनों में प्रेम का जब हुआ आगमन
अधरों पर आ सजी प्रीत की बाँसुरी।।

नयनों के कोर ने दीप माला चुनी
पंथ के बन वो दीपक चमकते गये
हमने बस भाव की एक माला बुनी
पृष्ठ की पंक्तियों में वो सजते गये।।

माथ पर धूलिकण से यूँ कुमकुम सजे
संध्या की रोशनी में नहा मन गया
नेह के धागों से आज ऐसे बँधे
साँचे में मोह के मन सिमटता गया।।

मन से मन ने जो इक अभिलाषा बुनी
मन के आगोश में मन मचलते गये
हमने बस भाव की एक माला बुनी
पृष्ठ की पंक्तियों में वो सजते गये।।

हो चले रिक्त पलकों की जब सीपियाँ
नयनों ने पास आ कर के चुंबन दिया
धुंध बन छाईं जब याद की बदलियाँ
पाश में बाँध कर मन को चंदन किया।।

मन ने मधुमास की लालसा जो बुनी
मन का अहसास पाकर निखरते गये
हमने बस भाव की एक माला बुनी
पृष्ठ की पंक्तियों में वो सजते गये।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25नवंबर, 2022





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