शर्वरी भी गा रही थी।

शर्वरी भी गा रही थी। 

द्वार पर मधुमास लेकर 
प्रेम का अनुप्रास लेकर
लाज का श्रृंगार ओढ़े
पास पल-पल आ रही थी
शर्वरी भी गा रही थी। 

दो दृगों में नेह लेकर
अंक में मृदु प्रेम भरकर
आस का आकाश ओढ़े
स्वप्न नूतन ला रही थी
शर्वरी भी गा रही थी।।

सजल नयन में स्वीकृति थी
नवल नयन नव आकृति थी
झाँझरों के मृदु स्वरों से
साँसें सुर सजा रही थी
शर्वरी भी गा रही थी।।

चाँदनी में आज लिपटी
दो पलों में रात सिमटी
ओस की चादर सुनहरी
पौन मद्धम आ रही थी
शर्वरी भी गा रही थी।।

आँजुरी संसार सारा
अंक में आकाश तारा
भोर भी जिसके सहारे
आस नूतन ला रही थी
शर्वरी भी गा रही थी।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02नवंबर, 2022



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