कहीं दूर सरगम साँसों की आहें अब भी बाकी।।
साँझ ढले सागर के तट पर तरुवर है एकाकी
आस सिमटती चली जा रही कितना कुछ है बाकी
लहरों से भी शोर अधिक अब अंतस में उठता है
कहीं दूर सरगम साँसों की आहें अब भी बाकी।।
कौन किनारा छोड़ सका जो छोड़ चले जाओगे
दूर कहीं भी जाओ सबसे यादों में आओगे
कहीं रागिनी मद्धम-मद्धम जब मन बहलायेगी
बरबस तब तस्वीर हमारी नयनों में पाओगे।।
नयनों के कोरों में अब भी कहीं नमी है बाकी
कहीं दूर सरगम साँसों की आहें अब भी बाकी।।
टूटे कितने दफा किनारे लहरों से टकराए
कभी दूर से घात लगाया कभी पास तक आये
बिछड़े कितनी बार लहर से कितने दाग उठाये
दूर कहो कब हुए किनारे, पास लहर के आये।।
लहरों की हर घातों में कुछ, कहीं कशिश है बाकी
कहीं दूर सरगम साँसों की आहें अब भी बाकी।।
छूटा अवसर जो हाथों से मुश्किल फिर आएगा
छूटा मन का साथ कहीं तो जीवन पछतायेगा
बिखरे मन से गीत भला कब कोई गा पाया है
सरगम गीतों से रूठी छंद सँवर कब पाया है।।
सरगम में फिर गीत सजाओ राग अभी भी बाकी
कहीं दूर सरगम साँसों की आहें अब भी बाकी।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
01नवंबर, 2022
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